जीवन जीने के तरीके क्या हैं ?
आदरणीय हमारा मानना है जीवन जीने की मुख्य रूप से 4 तरिके हो सकते है
1 अपने में मस्त रहकर
2 स्वयं के व दुसरो के हित मे व्यस्त रहकर
3 गलत राह पर भटक कर
4 परमात्मा में लीन रहकर
1 स्वयं में मस्त
छोटा नवजात शिशु /मानसिक रोगी सदैव स्वयं में मस्त रहता है उसे दुनियादारी का ज्ञान नही कोई उसकी भाषा को समझ पाता नही इसलिये वो अधिकतर स्वयं में मस्त रहता है
2 स्वयं व दुसरो के हित मे व्यस्त रहकर
छोटे 5 वर्ष के बच्चे से लेकर वृद्ध अवस्था तक हर कोई किसी न किसी कार्य मे स्वयं को व्यस्त रखता है बच्चे अपनी तोतली बोली व हरकतों से परिजनों को लुभाकर स्वयं भी खुश रहते हैं और दूसरों को भी खुश रखते हैं वही अन्य स्वयं के /परिवार के व अन्य के लिये प्रतिदिन अनेक कार्य कर अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं
https://youtu.be/r6a7o_4Dt0k
3 गलत राह पर भटक कर
बचपन की गलतियों व अन्य कारणों से कुछ लोग सही मार्ग को छोड़ कुछ ऐसा कर बैठते हैं कि उन्हें अपनी व परिवार /रिश्तेदारों की छवि तो धूमिल होती ही है वही वो चैन से कभी नही रह पाते ऐसे लोग अपराध पर अपराध की श्रृंखला बनाते जाते है और अंत मे पछतावे के अलावा इनके पास कुछ नही बचता थाना /कोर्ट और समाज का डर इन्हें ना ठीक से जीने देता है ना ये लोग मर ही पाते है इन लोगो के लिये झूठ बोलना /धोखा देना आम बात होती है
4 परमात्मा में लीन रहकर
साधु /संत इस मार्ग पर चलकर अनेको सिद्धियों को प्राप्त करते रहते है और इनका अंतिम लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति रहता है भारत की भूमि पर अनेक ऐसे साधु /संत हुवे है जिन्होंने परमात्मा में लीन होकर अपना लक्ष्य प्राप्त किया है
सारांश -सदैव सदमार्ग पर चले सच्चाई और ईमानदारी से कर्म करते रहे परमात्मा सदैव आपकी मदद हेतु ततपर रहेगा ऐसा हमारा मानना है मेहनत की कमाई सूखी रोटी भी अमीरों के कीमती व्यंजनों से अच्छी होती है
झूठ /धोखा जिसने भी किसी से किया है अंत मे उसी को उसका दण्ड भी किसी न किसी रूप में मिलता रहा है
ॐ नमो---//---
आज के लिये इतना ही बाकी फिर
Https://msrishtey.blogspot.com
https://wa.me/919034664991
आदरणीय हमारा मानना है जीवन जीने की मुख्य रूप से 4 तरिके हो सकते है
1 अपने में मस्त रहकर
2 स्वयं के व दुसरो के हित मे व्यस्त रहकर
3 गलत राह पर भटक कर
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1 स्वयं में मस्त
छोटा नवजात शिशु /मानसिक रोगी सदैव स्वयं में मस्त रहता है उसे दुनियादारी का ज्ञान नही कोई उसकी भाषा को समझ पाता नही इसलिये वो अधिकतर स्वयं में मस्त रहता है
2 स्वयं व दुसरो के हित मे व्यस्त रहकर
छोटे 5 वर्ष के बच्चे से लेकर वृद्ध अवस्था तक हर कोई किसी न किसी कार्य मे स्वयं को व्यस्त रखता है बच्चे अपनी तोतली बोली व हरकतों से परिजनों को लुभाकर स्वयं भी खुश रहते हैं और दूसरों को भी खुश रखते हैं वही अन्य स्वयं के /परिवार के व अन्य के लिये प्रतिदिन अनेक कार्य कर अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं
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3 गलत राह पर भटक कर
बचपन की गलतियों व अन्य कारणों से कुछ लोग सही मार्ग को छोड़ कुछ ऐसा कर बैठते हैं कि उन्हें अपनी व परिवार /रिश्तेदारों की छवि तो धूमिल होती ही है वही वो चैन से कभी नही रह पाते ऐसे लोग अपराध पर अपराध की श्रृंखला बनाते जाते है और अंत मे पछतावे के अलावा इनके पास कुछ नही बचता थाना /कोर्ट और समाज का डर इन्हें ना ठीक से जीने देता है ना ये लोग मर ही पाते है इन लोगो के लिये झूठ बोलना /धोखा देना आम बात होती है
4 परमात्मा में लीन रहकर
साधु /संत इस मार्ग पर चलकर अनेको सिद्धियों को प्राप्त करते रहते है और इनका अंतिम लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति रहता है भारत की भूमि पर अनेक ऐसे साधु /संत हुवे है जिन्होंने परमात्मा में लीन होकर अपना लक्ष्य प्राप्त किया है
सारांश -सदैव सदमार्ग पर चले सच्चाई और ईमानदारी से कर्म करते रहे परमात्मा सदैव आपकी मदद हेतु ततपर रहेगा ऐसा हमारा मानना है मेहनत की कमाई सूखी रोटी भी अमीरों के कीमती व्यंजनों से अच्छी होती है
झूठ /धोखा जिसने भी किसी से किया है अंत मे उसी को उसका दण्ड भी किसी न किसी रूप में मिलता रहा है
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