क्या सामूहिक विवाह होना चाहिये ?
आदरणीय इसको समझने के लिये पूरा लेखकर पढ़कर ही अपना निणर्य ले क्योकि हमारे अनुसार सामूहिक विवाह एक अभिशाप (मीठा विष) है जो समय के साथ साथ समाज को निगलने का काम करेगा
कारण आयोजको को तीन जगह से धन मिलता है सरकार से /समाज के धनी बन्धुओ से /विवाह में शामिल वर /वधू पक्ष से कहने का अर्थ खर्च से अधिक धन आना बड़ी बात नही
जबकि खर्च जमा धन से करने के अवसर कम होते है कारण समाज मे बैठे बन्धुओ का सहयोग हर प्रकार से समाज भावनाओ /निजस्वार्थ के चलते हर तरह से मिलता है आयोजको को
कैसे
ऐसे आयोजनों में तीन प्रकार के बन्धु सहयोग करते है
एक जिनकी आर्थिक मजबूरी है ऐसा विवाह करने की या फिर फ़्री का दान दहेज चाहते हो इनके लिये स्वाभिमान /उसूल से कोई लेना देना नही हो
दूसरे वो जिनको ना तो विवाह करना है और ना ही उनके पास दान /सहयोग करे इतना धन है ऐसे बन्धु आयोजक व सहयोगी के रूप में काम करते है
तीसरे वो जिनके पास धन तो बहुत है बच्चो के विवाह हो चुके या फिर छोटे है केवल नाम प्रसिद्धि या पुण्य लाभ के लिये दान /उपहार देना चाहते है या फिर दान पर इनकम टैक्स में छूट पाने के लिये देना चाहे
हालांकि जिन्हें फ्री दान दहेज पाने /सस्ता विवाह करने की इच्छा हो वो करे हमे आपत्ति नही क्योकि ऐसे विवाह के बाद आप समाज के सामने सिर उठाकर बोलने लायक नही रहेंगे अगर आपने प्रयास किया तो कोई भी आपको या आपके परिजनों को सामूहिक विवाह की याद दिलाकर झुकने पर मजबूर कर सकता है
स्वाभिमान / सच्चाई और उसूलों को पसन्द करने वाले बन्धु समझौता नही करना चाहेंगे किसी भी कीमत /लालच में आकर सामूहिक विवाह कदापि नही करेगा बेसक मंदिर में चुनरी उड़ा कर या कोर्ट मैरिज कर या फिर आर्य समाज मे विवाह कर वधु घर लानी पड़े या विदा करनी पड़े
देखा जाए तो कोर्ट मैरिज से सस्ता /बेहतर अन्य विवाह हो ही नही सकता कारन सरकारी नियम है कि विवाह आप जहाँ मर्जी करे किन्तु रजिस्टर्ड करवाना आवश्यक हो गया है और आप विवाह के लिये जमा पूंजी से घरेलू जरूरत अनुसार सामान खरीद भी सकते है एक स्वाभिमानी को और क्या चाहिये यही ना सदैव सिर उठाकर जिओ तो मजा ज्यादा आता है जीने का
दूसरे वो जिन्हें स्वाभिमान /सच्चाई और उसूलों से कोई लेना देना नही केवल स्वार्थ पूर्ति होनी चाहिये बेसक कुछ भी करना पड़े यही लोग अक्सर धोखा करते /पाते है कही रिश्ता करवाने के नाम पर बीच मे हजारों /लाखो डकार जाते है जिनका कही जिक्र तक नही होता तो कही विवाह के उपरांत बच्चे /बच्ची कातलाक या/शोषण के रूप में
तीसरे सामर्थ्य वान जो दान /उपहार देकर नाम कमाना चाहते है इनकी कोई गलती नही किन्तु ये खुद भी धोखे का शिकार बनते है कारण इन्हें खुद ये नही पता होता कि आयोजको ने इन जैसे कितने सेंकडो /हजारों बंधुओ से लाखों रुपया जमा तो किये किन्तु हिसाब आधा अधूरा दिया या फिर उपहार विवाहित जोड़ो को मिला ही नही
आपने एक बात और देखी सुनी होगी आयोजक या उनके सहयोगी चन्दा /दान मांगने आपके घर दुकान तक पहुंच जाते है बेसक आप उनके राज्य में ना हो तब भी इसके पीछे है उनका निजस्वार्थ आने से दान /उपहार की बुकिंग भी होगी और किसके यहां विवाह योग्य बच्चा /बच्ची है और परिवार की आर्थिक स्थिति क्या है सब देख लेते है यही से इनका खेल शुरू होता है
धनी परिवार इनको लालच देकर अपने बच्चे /बच्ची के लिये रिश्ते पूछने लगते है बेसक उनका बच्चे की आयु ज्यादा हो या अन्य शारिरिक कमी हो या फिर रिश्ता मिल नही रहा हो उन्हें तो विवाह करवाने की इच्छा है बेसक जो मांगो देने को तैयार रहते है
अतः सामूहिक विवाह ना स्वयं करे और ना दुसरो को प्रेरित करे क्योकि स्वाभिमान से बढ़कर धन नही और जिसका स्वाभिमान चला गया वो बेसक करोड़पति /अरबपति हो जावे स्वाभिमान लौटकर नही आता कभी
सारांश - विवाह कोर्ट /मंदिर या अपने घर /धर्मशाला जहाँ मर्जी करो पर फ्री के सामान की खातिर या अन्य स्वार्थ के वशीभूत होकर सामूहिक विवाह नही करे ना ही करवाये इसके दूरगामी परिणाम भुगतने पड़ सकते है
विवाह कम पैसे में भी होता है और अरबो रुपये में भी आपका जितना सामर्थ्य हो आप अपने अनुसार स्वयं के दम पर कर सकते है केवल थोड़ा संयम से काम लेना होगा
ये लेख हमारे निजी विचार व कुछ बन्धुओ की भावनाओ को सुनकर पढ़कर लिखा गया है जरूरी नही आप सहमत ही हो आप को जो उचित लगे कीजिये बताना हमारा फर्ज है मानो ना मानो मर्जी आपकी
धन्यवाद
ॐ नमो---//---
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