बुधवार, 5 फ़रवरी 2020

पक्के साधक (सेवक) कैसे बने ?

पक्के साधक (सेवक) कैसे बने?

आदरणीय आप जानते है इस संसार मे सेवा से बड़ी पूजा कोई नही  सेवा आप तीन प्रकार से कर सकते है
1 तन से
2 धन से
3 मन से

आपका तरीका जो मर्जी रहे पर सेवा करने से पूर्व आपको साधक (सेवक)बनने के भावना/गुण /दृढ़ संकल्प लेने की इच्छा शक्ति होनी चाहिये

साधक (सेवक) भी दो प्रकार के होते है एक वो जो सभी उतार चढ़ाव हर स्थिति /परिस्थितियों में स्वयं को स्थिर रख सके यानी पक्के  साधक

दूसरे वो जिन्हें अभी ज्यादा ज्ञान नही शुरुवाती दौर में है ऐसे साधक शुरुवात तो कर लेते है किंतु साधना (सेवा) के मार्ग में आने वाली रुकावट यानी स्थिति /परिस्थितियों का ज्ञान इन्हें नही हो पाता

इसके लिये एक सुयोग्य /समर्थ गुरु की आवश्यकता सबको पड़ती है आप गुरु किसे चुने ये आपकी
इच्छा व परख (अनुभव) शक्ति पर निर्भर करेगा

आज का विषय पक्के साधक ( सेवक )कैसे बने ?

एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा गुरु जी सुना है दो प्रकार के साधक (सेवक) होते है क्या ये सही बात है

गुरु ने कहा हाँ सत्य है चलो तुम्हे दिखाकर बताता हूं

गुरु जी अपने शिष्य को एक बुजुर्ग कुम्हार के पास ले गए और बोले हमे पानी के लिये मटका चाहिये
  कुम्हार ने कहा महाराज मेरा शरीर अब बुजुर्ग हो चला है मटके बना नही सकता आप मेरे बेटो के पास जाए वो आपको अच्छा मटका छांटकर दे देंगे

गुरु शिष्य पहले छोटे बेटे के पास गए बोले पानी के लिये मटका दीजिये छोटे बेटे ने कहा महाराज में आपको पक्का मटका देने में असमर्थ हु कारण मेरे बुजुर्ग पिता से मैंने मटका बनाने की कला तो सीख ली पर मटका पकाना मैं नही जानता हूं और बड़े भाई से मैं किसी कारन वश सीखना नही चाहता अतः क्षमा करें आप मेरे बड़े भाई के पास जाए वो आपको पानी के लिये अच्छा मटका उपलब्ध करा देंगे

फिर गुरु जी और शिष्य कुम्हार के बड़े बेटे के पास गए और कहा पानी के लिये मटका दीजिये
  उसने कहा महाराज कितने चाहिये गुरु जी ने कहा पहले दिखाओ कैसे बने है फिर ले भी लेंगे कुम्हार के बड़े बेटे ने कुछ मटके अलग अलग रख दिये और उनमें से दो मटके उठाकर कहा महाराज ये लीजिये ये कच्चा है ठीक से पकाई नही हुई बिखर सकता है और दूसरा मटका पका हुआ है अच्छा रहेगा गर्मी में पानी ठंडा रहेगा इसमे

गुरु ने कहा तुन्हें कैसे पता पानी ठंडा रहेगा इस मटके में  तब कुम्हार के बड़े बेटे ने कहा महाराज कुम्हार का बेटा हु मिट्टी के प्रकार व गुण को जानता हूं और मटका बनाने का कार्य बीते 20 साल से कर रहा हु इसलिये निश्चिंत होकर मेरा दिया मटका ले जाये पानी ठंडा रहेगा गर्मी के दिनों में

गुरु शिष्य ने मटका लिया और वापिस आश्रम पहुंच गए

गुरु ने शिष्य से पूछा क्या शिक्षा मिली बताओ

तब शिष्य ने कहा गुरु जी मुझे समझ आ गया है कि उन दोनों के गुरु (पिता) एक होते हुए भी छोटा बेटा कच्चा (अधूरे ज्ञान वाला) रह गया और बड़ा बेटा (मटका बनाने की कला को पूर्ण सीखकर) पक्का बन चुका

अब से प्रयास करुंगा आपके सानिध्य से मिले ज्ञान (कला) को मैं पूर्ण सीखकर हर स्थिति /परिस्थिति में अडिग रहकर  जनहित में साधना/ सेवा (सदमार्ग )को अपना सकू ताकि सबका भला हो


भावार्थ - आपके गुरु कोई भी हो उनसे मिले ज्ञान को पूर्ण सीखकर  जनहित में लगाये तभी आप पक्के साधक (सेवक)  कहलायेंगे अन्यथा कच्चे मटके की तरह बिखरना सम्भव ।

धन्यवाद

ॐ नमो---//---

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