मृत्युभोज का बिगड़ता स्वरूप क्या हो समाधान ?
आदरणीय आप जानते है जीवन मरण दुनिया मे लगा रहता है यानी जिसका जन्म हुआ उसका मरण भी निश्चित समय पर होगा
लेख को पूरा पढ़े ततपश्चात अपना निर्णय ले सम्भव है आप हमारी बातों से सहमत ही होंगे
मृत्युभोज क्यो आवश्यक है ? 👇🏻
आदरणीय दुनिया मे हर जीव को स्वस्थ रहने के लिये भूख अनुसार भोजन करना आवश्यक है भोजन कब कहा कैसा होगा ये कोई नही जानता
उदाहरण 👇🏻
आप परिवार सहित शहर /गांव से दूर सफर में है जहां सुबह से शाम हो जाये तब आप क्या करेंगे आस पास किसी होटल /रेस्टोरेंट या किसी परिवार की सहायता से भोजन का प्रबंध करेंगे या नही सोचिये अवश्य करेंगे क्योंकि आप जानते है भोजन के बिन शरीर को चलायमान रख पाना सम्भव नही
इसी लिये सदियों पूर्व पूर्वजो ने सोच विचार कर विवाह के समय अलग भोजन यानी अच्छे से अच्छा भोजन खिलाने की प्रथा चलाई
वही किसी की मृत्यु होने पर दुःखी परिवार को सांत्वना देने और उसकी यथा सम्भव सहायता के लिये दूर दराज से आये परिवार /रिश्तेदार एवं मित्रो के लिये सादा भोजन बनाने की प्रथा चलाई कारन शोकाकुल परिवार में उन दिनों 12 दिन शौक स्वरूप भोजन नही बनता था और 13वे दिन सभी मिल बैठकर उसके यहाँ भोजन कर उसे दुख में सहभागी और सदैव सहयोगी होने का अहसास करवाता था ताकि वो परिवार दुख से उभर कर फिर से जीवन की धारा में सबके साथ आगे बढ़े
दुखी परिवार की सहायता कैसे 👇🏻
आदरणीय शौक के दिनों में आये परिवार /रिश्तेदार व मित्रगण उस परिवार के बारे में मिल बैठकर परामर्श करते थे जिससे शोकाकुल परिवार की मदद हो सके
उदाहरण 👇🏻
शोकाकुल परिवार में आगे कमाने वाला है या नही उनके बच्चों की आयु क्या है बेटे /बेटी की शिक्षा कहा तक हुई उस परिवार की आर्थिक स्थिति क्या है सब पर विचार कर एकमत से निर्णय लिया जाता था
आर्थिक कमजोर को धन /शयिग देकर रोजगार /कारोबार में मदद
विवाह हेतु बच्चो के विवाह की जिम्मेदारी लेकर
बुजुर्ग को उसकी जरूरत अनुसार मदद कर
व
रोगी का उपचार करवाकर मदद करना लक्ष्य होता था
क्या मृत्युभोज आवश्यक था ? 👇🏻
जी हां भोजन शरीर के लिये आवश्यक है और शौक के समय भोजन कर पाना बड़ा कठिन कार्य होता है कारण एक तरफ पेट की भूख तो दूसरी और शोकाकुल परिवार का दुःख इसी कारन उसे मृत्युभोज का नाम दिया गया ताकि हर कोई भोजन तो अवश्य करे पर शोकाकुल परिवार की मदद किस तरह की जाए ये अवश्य याद रखे
शुरुवात में मृत्युभोज कैसा था 👇🏻
आदरणीय शुरुवात में मृत्युभोज बेहद सादा और बेस्वाद बनता था कारण दुखी मन से बनाया भोजन कभी स्वादिस्ट हो ही नही सकता और सांत्वना देने हेतु आये बन्धु वहां स्वाद नही बल्कि शोकाकुल परिवार को सांत्वना और मदद सदैव का प्रयास सदैव करते थे
मिली जानकारी अनुसार उस समय
बच्चे या जवान मौत के समय में सादी दाल या मौसम अनुसार कोई सब्जी बनती थी और रोटी पर घी नही लगाया जाता था
किन्तु
अगर मरने वाला कोई बुजुर्ग हो जिसने अपने जीवन की हर जिम्मेदारी निभा ली हो उसका परिवारजन जीवित और खुशहाल हो तब मृत्युभोज में एक मिष्ठान भी रखा जाता था और इसके पीछे का कारन केवल इतना कि जिम्मेदारी निभाकर अपनी आयु पूर्ण कर दुनिया से विदा होने पर दुख नही अपितु उसके परमधाम जाने की खुशी होती थी और हर कोई यही सोचता था कि मैं भी उनकी तरह अपनी जिम्मेदारी निभाकर और परिवार को खुशहाल देखता हुआ दुनिया से विदा ले सकू
मृत्युभोज का स्वरूप क्यो बिगड़ा क्या है समाधान ? 👇🏻
आदरणीय किसी भी रीति /कुरीति के जनक समाज मे प्रबुद्धजन व धन सम्पन्न बन्धु ही होते है
और ये बन्धु सदैव खुद को समाज से बढ़कर मानते है अब इनके पास धन है और ये धन का सदुपयोग करे या दुरुपयोग इनको रोकना टोकन सब व्यर्थ है कारन दुसरो की सुनना /मानना आदत नही इनकी ये तो वही करेंगे जिसमे इनकी शौहरत /धन का प्रदर्शन हो ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा इनकी तारीफ करे
इन्हें अंतर नही पड़ता शायद किसी के दुख दर्द से बस इसलिये बीते कुछ वर्षों से इन्होंने मृत्युभोज को भी राजसिभोज बना दिया
शौक के समय मृत्युभोज में ये अनेको प्रकार के मिष्ठान व पकवान बनवाने लगे और समाज का माध्यम वर्ग इनकी नकल करते हुए ऐसा ही करने लगा बेसक कर्ज उठाकर मृत्युभोज क्यो न बनवाना पड़े पर बनवाता अवश्य है क्योंकि वो स्वयं को किसी से कम नही समझता
और निम्न वर्ग तो सदैव दुसरो की दया पर जीवित रहा है जैसा दुसरो ने खिलाया खा लिया जैसा दुसरो ने कहा कर दिया जैसे कि उसका कोई अस्तित्व ही नही हो बस दुसरो के अधीन होकर रह गया
इस कुरीति को सुधारने केउपाय ये है 👇🏻
1 स्वयं के प्रण लीजिये किसी के भी यहां मृत्युभोज में किसी प्रकार का राजसी भोजन नही करूँगा बल्कि अन्य कोई विकल्प हो तब तो वहां भोजन ही नही करूँगा करना ही पड़े तब भी पानी या सादा भोजन ही करूँगा अन्य सभी प्रकार के पकवान /मिष्ठान का बहिष्कार करूँगा
2 अपने यहां मृत्युभोज में सादा दाल /सब्जी रोटी ही बनवाऊंगा अन्य किसी प्रकार के मिष्ठान भोजन में नही रखूंगा
3 मेरे अन्य परिवार व मित्रो को भी मृत्युभोज में सादा भोजन ही रखने को प्रेरित करुंगा ताकि आये बन्धु भूखे नही रहे और पूर्वजो द्वारा चलाई रीति की रक्षा भी हो सके
भावार्थ - मृत्युभोज में सिम्पल सादा भोजन ही हो और शोकाकुल परिवार की मदद को लक्ष्य रखे ताकि एक दूसरे के सही मायने में साथी बन सके अपने धन का अनावश्यक प्रदर्शन मृत्युभोज में उचित नही
आज के लिये इतना ही -----
ॐ नमो ----//----
आदरणीय आप जानते है जीवन मरण दुनिया मे लगा रहता है यानी जिसका जन्म हुआ उसका मरण भी निश्चित समय पर होगा
लेख को पूरा पढ़े ततपश्चात अपना निर्णय ले सम्भव है आप हमारी बातों से सहमत ही होंगे
मृत्युभोज क्यो आवश्यक है ? 👇🏻
आदरणीय दुनिया मे हर जीव को स्वस्थ रहने के लिये भूख अनुसार भोजन करना आवश्यक है भोजन कब कहा कैसा होगा ये कोई नही जानता
उदाहरण 👇🏻
आप परिवार सहित शहर /गांव से दूर सफर में है जहां सुबह से शाम हो जाये तब आप क्या करेंगे आस पास किसी होटल /रेस्टोरेंट या किसी परिवार की सहायता से भोजन का प्रबंध करेंगे या नही सोचिये अवश्य करेंगे क्योंकि आप जानते है भोजन के बिन शरीर को चलायमान रख पाना सम्भव नही
इसी लिये सदियों पूर्व पूर्वजो ने सोच विचार कर विवाह के समय अलग भोजन यानी अच्छे से अच्छा भोजन खिलाने की प्रथा चलाई
वही किसी की मृत्यु होने पर दुःखी परिवार को सांत्वना देने और उसकी यथा सम्भव सहायता के लिये दूर दराज से आये परिवार /रिश्तेदार एवं मित्रो के लिये सादा भोजन बनाने की प्रथा चलाई कारन शोकाकुल परिवार में उन दिनों 12 दिन शौक स्वरूप भोजन नही बनता था और 13वे दिन सभी मिल बैठकर उसके यहाँ भोजन कर उसे दुख में सहभागी और सदैव सहयोगी होने का अहसास करवाता था ताकि वो परिवार दुख से उभर कर फिर से जीवन की धारा में सबके साथ आगे बढ़े
दुखी परिवार की सहायता कैसे 👇🏻
आदरणीय शौक के दिनों में आये परिवार /रिश्तेदार व मित्रगण उस परिवार के बारे में मिल बैठकर परामर्श करते थे जिससे शोकाकुल परिवार की मदद हो सके
उदाहरण 👇🏻
शोकाकुल परिवार में आगे कमाने वाला है या नही उनके बच्चों की आयु क्या है बेटे /बेटी की शिक्षा कहा तक हुई उस परिवार की आर्थिक स्थिति क्या है सब पर विचार कर एकमत से निर्णय लिया जाता था
आर्थिक कमजोर को धन /शयिग देकर रोजगार /कारोबार में मदद
विवाह हेतु बच्चो के विवाह की जिम्मेदारी लेकर
बुजुर्ग को उसकी जरूरत अनुसार मदद कर
व
रोगी का उपचार करवाकर मदद करना लक्ष्य होता था
क्या मृत्युभोज आवश्यक था ? 👇🏻
जी हां भोजन शरीर के लिये आवश्यक है और शौक के समय भोजन कर पाना बड़ा कठिन कार्य होता है कारण एक तरफ पेट की भूख तो दूसरी और शोकाकुल परिवार का दुःख इसी कारन उसे मृत्युभोज का नाम दिया गया ताकि हर कोई भोजन तो अवश्य करे पर शोकाकुल परिवार की मदद किस तरह की जाए ये अवश्य याद रखे
शुरुवात में मृत्युभोज कैसा था 👇🏻
आदरणीय शुरुवात में मृत्युभोज बेहद सादा और बेस्वाद बनता था कारण दुखी मन से बनाया भोजन कभी स्वादिस्ट हो ही नही सकता और सांत्वना देने हेतु आये बन्धु वहां स्वाद नही बल्कि शोकाकुल परिवार को सांत्वना और मदद सदैव का प्रयास सदैव करते थे
मिली जानकारी अनुसार उस समय
बच्चे या जवान मौत के समय में सादी दाल या मौसम अनुसार कोई सब्जी बनती थी और रोटी पर घी नही लगाया जाता था
किन्तु
अगर मरने वाला कोई बुजुर्ग हो जिसने अपने जीवन की हर जिम्मेदारी निभा ली हो उसका परिवारजन जीवित और खुशहाल हो तब मृत्युभोज में एक मिष्ठान भी रखा जाता था और इसके पीछे का कारन केवल इतना कि जिम्मेदारी निभाकर अपनी आयु पूर्ण कर दुनिया से विदा होने पर दुख नही अपितु उसके परमधाम जाने की खुशी होती थी और हर कोई यही सोचता था कि मैं भी उनकी तरह अपनी जिम्मेदारी निभाकर और परिवार को खुशहाल देखता हुआ दुनिया से विदा ले सकू
मृत्युभोज का स्वरूप क्यो बिगड़ा क्या है समाधान ? 👇🏻
आदरणीय किसी भी रीति /कुरीति के जनक समाज मे प्रबुद्धजन व धन सम्पन्न बन्धु ही होते है
और ये बन्धु सदैव खुद को समाज से बढ़कर मानते है अब इनके पास धन है और ये धन का सदुपयोग करे या दुरुपयोग इनको रोकना टोकन सब व्यर्थ है कारन दुसरो की सुनना /मानना आदत नही इनकी ये तो वही करेंगे जिसमे इनकी शौहरत /धन का प्रदर्शन हो ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा इनकी तारीफ करे
इन्हें अंतर नही पड़ता शायद किसी के दुख दर्द से बस इसलिये बीते कुछ वर्षों से इन्होंने मृत्युभोज को भी राजसिभोज बना दिया
शौक के समय मृत्युभोज में ये अनेको प्रकार के मिष्ठान व पकवान बनवाने लगे और समाज का माध्यम वर्ग इनकी नकल करते हुए ऐसा ही करने लगा बेसक कर्ज उठाकर मृत्युभोज क्यो न बनवाना पड़े पर बनवाता अवश्य है क्योंकि वो स्वयं को किसी से कम नही समझता
और निम्न वर्ग तो सदैव दुसरो की दया पर जीवित रहा है जैसा दुसरो ने खिलाया खा लिया जैसा दुसरो ने कहा कर दिया जैसे कि उसका कोई अस्तित्व ही नही हो बस दुसरो के अधीन होकर रह गया
इस कुरीति को सुधारने केउपाय ये है 👇🏻
1 स्वयं के प्रण लीजिये किसी के भी यहां मृत्युभोज में किसी प्रकार का राजसी भोजन नही करूँगा बल्कि अन्य कोई विकल्प हो तब तो वहां भोजन ही नही करूँगा करना ही पड़े तब भी पानी या सादा भोजन ही करूँगा अन्य सभी प्रकार के पकवान /मिष्ठान का बहिष्कार करूँगा
2 अपने यहां मृत्युभोज में सादा दाल /सब्जी रोटी ही बनवाऊंगा अन्य किसी प्रकार के मिष्ठान भोजन में नही रखूंगा
3 मेरे अन्य परिवार व मित्रो को भी मृत्युभोज में सादा भोजन ही रखने को प्रेरित करुंगा ताकि आये बन्धु भूखे नही रहे और पूर्वजो द्वारा चलाई रीति की रक्षा भी हो सके
भावार्थ - मृत्युभोज में सिम्पल सादा भोजन ही हो और शोकाकुल परिवार की मदद को लक्ष्य रखे ताकि एक दूसरे के सही मायने में साथी बन सके अपने धन का अनावश्यक प्रदर्शन मृत्युभोज में उचित नही
आज के लिये इतना ही -----
ॐ नमो ----//----
यह सम्भव नहीं कि आपकी सोच के अनुसार सही चलता रहे कुरीतियों शामिल होंगी ही अच्छा होगा इसे जड़ से खत्म करना। आपने जो तर्क दिए वे भी इस समय के अनुसार उचित नहीं।
जवाब देंहटाएंआदरणीय क्या घर सांत्वना देने दूर से आये बन्धु को भूखा रखना उचित होगा जी
हटाएंनहीं पर इस धारणा से कि यह मृतक की खशी के लिए आवश्यक है। और इसका स्वरूप जो व्यापक हो जाता है सामाजिक भोजन के रूप में अनुचित है
हटाएंसबसे पहली और बड़ी विशेष बात
जवाब देंहटाएंके मृत्युभोज नाम ही निरर्थक व गलत है।
आज कोई भी काहिं भी बिना खर्च किये नहीं जा सकता
और उसमें कइयों का तो इतना पैसा खर्च होता है के उसमें वे सहपरिवार मनचाहा भोजन कर सकते हैं
अच्छा भला नाम रखा गया था गंगा प्रसादी, न्यात गंगा
इसमें मृतक के परिवार से अपने संबंध व अन्य क्षेत्रों से आये गए समाज जनों से मेलजोल इसका मुख्य उद्देशयः हुआ करता था
आज इसे मृत्युभोज का नाम देना 1 साजिश की तरह है।
इसका विरोध करने वाले ज्यादातर वे लोग हैं
जिन्हें रिश्तेदार बोझ लगते हैं
व जो हर बात को सिर्फ खर्च व व्यवास्था में लगने वाली मेहनत से जोड़ कर देखते हैं।
जिन्हें न रिश्तेदारों में आना जाना पसंद है
न रिश्तेदारों का आना जाना पसंद है
सो वे इसका सरासर बंद करने की बात करते हैं।
आज की तारीख में कहीं भी समाज का कोई ऐसा दबाव नहीं होता के आपको गंगा प्रसादी में कई मिष्ठान या पकवान बनाना ही होगा
और ना ही कोई सिर्फ मिष्ठान खाने के लिए दूर दूर से आते हैं
लोजी सांत्वना देने आते हैं
और अन्य भाई बंधुओं से मेल जोल के लिए गंगाप्रसादी में शामिल होने आते हैं
इस आयोजन में मेलजोल के साथ कई सामाजिक निर्णय भी लिए जाते थे
कई बच्चों के नए रिश्ते भी हो जाया करते थे
बारीकी से अध्ययन करें
तो पाएंगे
जबसे इस आयोजन में विकृत्तियाँ व दिखावा शामिल हुआ है
ताभि से समाज में रिश्तेदारियां करने व होने व निभाने में परेशानियां शुरू हुई है।
आज की तारीख में 1 मात्र गंगा प्रसादी ही ऐसा आयोजन है
जिसमें ज्यादा से ज्यादा समाज जनों का मेलजोल होता है
सिर्फ यही 1 मात्र ऐसा आयोजन है जिसमें 95 % लोग सिर्फ सामाजिक व रिश्तेदार होते हैं।
इसके बैंड होने का मतलाब समाज के मेलजोल का आखिरी रास्ता बंद करना है
सो इसे बंद करने के बजाय सादगी पूर्ण ढंग से किया जाना ही समाज हित में है।
🙏🙏जय अजमीढ़ जी🙏🙏
आदरणीय नाम को गलत कहने से कुछ नही होगा कारण सांत्वना देने परिवारों /रिश्तेदारों को भूखा नही रखा जा सकता वो भी अपने है
हटाएंइसका विरोध तो फिर किट्टी पार्टियों /जन्मदिन /सालगिरह आदि के नाम पर दिखावा क्यो क्या उनमे खर्च नही लगता जी विचार करे
😊
@ramesh सोनी जी आदरणीय आपके विचार सराहनीय है जी मृत्युभोज के नाम पर राजसी भोज बन्द हो और बुजुर्गों के अनुसार साधरण भोज ही इसमे खिलाना चाहिये 😊
हटाएं