बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

जीवन जीने के तरीके क्या है ?

जीवन जीने के तरीके क्या हैं ?

आदरणीय हमारा मानना है जीवन जीने की मुख्य रूप से 4 तरिके हो सकते है
1 अपने में मस्त रहकर
2 स्वयं के व दुसरो के हित मे व्यस्त रहकर
3 गलत राह पर भटक कर
4 परमात्मा में लीन रहकर

1 स्वयं में मस्त
     छोटा नवजात शिशु /मानसिक रोगी  सदैव स्वयं में मस्त रहता है उसे दुनियादारी का ज्ञान नही कोई उसकी भाषा को समझ पाता नही इसलिये वो अधिकतर स्वयं में मस्त रहता है

2 स्वयं व दुसरो के हित मे व्यस्त रहकर
 छोटे 5 वर्ष के बच्चे से लेकर वृद्ध अवस्था तक हर कोई किसी न किसी कार्य मे स्वयं को व्यस्त रखता है बच्चे अपनी तोतली बोली व हरकतों से परिजनों को लुभाकर स्वयं भी खुश रहते हैं और दूसरों को भी खुश रखते हैं वही अन्य स्वयं के /परिवार के व अन्य के लिये प्रतिदिन अनेक कार्य कर अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं
https://youtu.be/r6a7o_4Dt0k

3 गलत राह पर भटक कर
     बचपन की गलतियों व अन्य कारणों से कुछ लोग सही मार्ग को छोड़ कुछ ऐसा कर बैठते हैं कि उन्हें अपनी व परिवार /रिश्तेदारों की छवि तो धूमिल होती ही है वही वो चैन से कभी नही रह पाते ऐसे लोग अपराध पर अपराध की श्रृंखला बनाते जाते है और अंत मे पछतावे के अलावा इनके पास कुछ नही बचता थाना /कोर्ट और समाज का डर इन्हें ना ठीक से जीने देता है ना ये लोग मर ही पाते है  इन लोगो के लिये झूठ बोलना /धोखा देना आम बात होती है

4 परमात्मा में लीन रहकर
साधु /संत इस मार्ग पर चलकर अनेको सिद्धियों को प्राप्त करते रहते है और इनका अंतिम लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति रहता है भारत की भूमि पर अनेक ऐसे साधु /संत हुवे है जिन्होंने परमात्मा में लीन होकर अपना लक्ष्य प्राप्त किया है


सारांश -सदैव सदमार्ग पर चले सच्चाई और ईमानदारी से कर्म करते रहे परमात्मा सदैव आपकी मदद हेतु ततपर रहेगा ऐसा हमारा मानना है मेहनत की कमाई सूखी रोटी भी  अमीरों के कीमती व्यंजनों से अच्छी होती है

    झूठ /धोखा जिसने भी किसी से किया है अंत मे उसी को उसका दण्ड भी किसी न किसी रूप में मिलता रहा है

ॐ नमो---//---

आज के लिये इतना ही बाकी फिर
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सोमवार, 24 फ़रवरी 2020

प्रेम (अंतरजातीय) विवाह के कारण क्या ?

प्रेम  (अंतरजातीय) विवाह के कारण क्या ?

आदरणीय कहने को प्रेम विवाह पहले भी होते रहे है तब कुछ साल से लवमैरिज (अंतरजातीय विवाह ) की संख्या बढ़ती जा रही इसके कारणों को समझे और निदान का प्रयास अवश्य करे

क्योकि स्वजातीय विवाह में अन्य जाति बन्धुओ से वैर नही होता और नवदम्पति को उसके परिवार /रिश्तेदार व मित्रो का सहयोग /आशीर्वाद सदैव मिलता है जबकि अंतरजातीय विवाह में ऐसा सम्भव नही हो पाता


प्रेम विवाह (अंतरजातीय) विवाह के कारण

1 मीडिया एवं सोशल मीडिया पर हो रहे दुष्प्रचार कारण बहुत सी फ़िल्म प्रेम विवाह पर बनी है और उन सबमें हीरो को ज्यादा बड़ा चढ़ा कर दिखाया जाता है वो अकेला 20 /30/100 /200 को पीटकर आपनी हीरोइन से विवाह रचा कर फ़िल्म का the end होता है

2 एकल परिवारों में माता पिता अपनी सर्विस /व्यवसाय व निजी व्यस्तता के कारण बच्चो पर ध्यान कम देते है और बच्चे टीवी/मोबाइल /व गलत संगत में पढ़कर प्रेम (अंतरजातीय) विवाह करने लगे है

3 आजकल विवाह योग्य बच्चो के संस्कार कोई नही पूछता अब तो केवल बच्चे /बच्ची की सुंदरता /शिक्षा /आमदनी और पैतृक सम्पति देखकर अपने से अधिक सामर्थ्य वान से रिश्ता हर कोई करना चाहता है इन्ही बढ़ती अपेक्षाओं के कारण स्वजातीय रिश्ते  मिलते नही और जो मिलते है वहा दोनो परिवारों की सहमति नही होने से अन्तर्जातीत विवाह करना उचित मानने लगे है

4 परिवारिक /समाजिक बंधनो का अब महत्व कम हो चला है कारण हर कोई आजादी चाहता है लड़के /लड़कीं अपने साथ काम करने वाले या पढ़ने वाली की तरफ आकर्षित होकर प्रेम (अंतरजातीय) विवाह करने लगे है वो परिवारिक /समाजिक बन्धनो में घुटन महसूस करने लगे है शायद

5 समाजिक संस्थाओ में बैठे पदाधिकारी निजस्वार्थ में उलझकर रह गए है उन्हें समाजिक समस्याओं /जरूरतों का पता तो होता है किन्तु समाजहित में हर कोई कार्य करना नही चाहता कुछ बन्धु समाजहित में कार्य तो करते है किंतु उनके प्रयास पर्याप्त नही इस कारण भी प्रेम (अंतरजातीय) विवाह अधिक होने लगे है

6 सरकार से मिल रही सहायता के कारण भी प्रेम (अंतरजातीय) विवाह का बड़ा कारण है कारण इसमे नवदम्पति को सुरक्षा व अन्य सुविधाएं कुछ समय तक उन्हें मिल जाती है ऐसा सुनने में आता है

7 घर परिवार से दूर कार्यरत /शिक्षारत बच्चो को नए माहौल में कुछ दोस्त तो मिलते है किंतु परिवारिक दबाव रहता नही और वो एक दूसरे के प्रति आकर्षण /विचारों के कारण अंतरजातीय विवाह करने लगे है

8 आजकल विवाह में खर्च की अधिकता व अत्यधिक आडम्बरो /दहेज व कुछ अन्य कारण के चलते स्वजातीय रिश्ते नही बन पा रहे और मध्यम /गरीब परिवार अपनी आर्थिक हालात से तंग आकर अपने बच्चों के विवाह प्रेम (अंतरजातीय) विवाह करने लगे है

इन सबके अलावा भी भी बहुत से कारन से प्रेम (अंतरजातीय) विवाह होने लगे है अतः जितना जल्द हो सके इस कुरीति को खत्म कर स्वजातीय विवाह करे ताकि आप अपने परिवार व स्वजायीय बन्धुओ के साथ मिलकर समाज विकास में सहयोगी बने

आज के लिये इतना ही बाकी फिर

ॐ नमो ---//---

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मंगलवार, 18 फ़रवरी 2020

विवाह में देरी कारण क्या ?

विवाह में देरी कारण क्या ?

आदरणीय समाज मे युवाओं का विवाह समय पर नही होने से विकट समस्या खड़ी हो रही है जिसे सबको मिलकर हल करना चाहिये अन्यथा एक दिन आपके पास धन /बच्चे /बंगला /गाड़ी तो सब होंगे पर बहु /दामाद नही होंगे

कारण क्या

परिवार संगठित नही एकल परिवार में हम दो हमारे दो और सबके बीच वैचारिक मतभेद होने से समय पर विवाह नही हो रहे
उदाहरण - युवक /युवतियां चाहते है ज्यादा पढ़ लिखकर कोई अच्छी सर्विस /व्यवसाय को करने लगे यानी अपने पांव पर खड़े हो जाये फिर शादी कर लेंगे

वही उनके माता पिता चाहते है बच्चे /बच्ची पढ़ लिखकर कोई अच्छा व्यवसाय /सर्विस करेंगे तो रिश्ते बहुत मिल जायेंगे बस यही से गलती होती है बच्चो की शिक्षा 20 से 25 वर्ष में पूरी  होती हैं फिर 2 से 3 साल सर्विस /व्यवसाय को खोजने /करने में लग जाते हैं अब 28 साल के बच्चे हेतु रिश्ते की खोज शुरू तो करते है
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किन्तु परिवारिक बिखराव /रिश्तेदारों से दूरियां /मित्रो से सहयोग नही मिल पाने के कारण
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हर कोई सोशल मीडिया /वेबसाइट के माध्यम से रिश्ते की खोज करने लगा है कारण इसमे खर्च कम /समय की बचत और सुविधा अधिक तो मिलती है किंतु नही मिलता वो है दूसरे पक्ष का समय से जवाब
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कैसे कुछ लोग बच्चो की शिक्षा/सुंदरता /कुंडली/आमदनी /व्यवसाय /सर्बिस के अलावा बच्चे /बच्ची के विवाह में  कितना ज्यादा खर्च कर सकते है और बच्ची दहेज में कितना ला रही है या बच्चे के नाम कितनी जमीन जायदाद /बैंक बैलेंस आदि है को महत्व ज्यादा देने लगते है शुरू के दो तीन साल पसन्द आते नही जो पसन्द आते हैं उनके लिये परिवारिक सहमति बनती नही या फिर दूसरा पक्ष अपनी अत्यधिक अपेक्षाओं के चलते मना कर देता है
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इसी सोच के चलते बच्चे /बच्ची की आयु 35 की हो जाती है फिर लड़कियों के बराबर पढ़े लड़के नही मिलते और जो मिलते है वो पसन्द आते नही किसी की लड़कीं से शिक्षा /आमदनी कम होना
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सोचिये 35 वर्ष की आयु में लड़के और लड़कीं कि आधी जिंदगी निकल चुकी क्योकि अब इंसान 65 की आयु तक जी जिंदा रह पाता है एक अनुमान के अनुसार और 35 वर्ष जीवन के बीत चुके अब जवानी भी ढलने लगी है युवक /युवती मानसिक तनाव के चलते अनैतिक राह पर चलेंगे या फिर किसी बुरी आदत का शिकार होकर जीवन को बर्बाद कर लेंगे अतः जितना महत्व शिक्षा /व्यवसाय /सर्विस /धन को देते है उतना ही महत्व अगर परिवार /रिश्तेदार /मित्रो को देंगे तो शायद इस समस्या का कोई हल भविष्य में निकल भी आए

आज के लिये इतना ही बाकी फिर

ॐ नमो ---//---
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सोमवार, 17 फ़रवरी 2020

समाज पतन के जिम्मेदार कौन ?

समाज पतन के जिम्मेदार कौन ?

आदरणीय समाज पतन के अनेक कारण रहे हैं जिनमे से आज नीचे लिखे कारण समझकर ही पतन को रोक पाएंगे

1 परिवार -
     आदरणीय एक समय था जब सभी परिवार संगठित होकर रहना पसंद करते थे किंतु गाँव /शहर से दूर नोकरी/व्यवसाय हेतु /पुश्तेनी सम्पति के बंटवारे /आपसी वैचारिक मतभेद आदि कारणों से परिवार सिमट कर हम दो हमारे दो तक ही रह गए है और आपसी दूरियां बढ़ने से आज हालात ये है कि विवाह की उम्र निकल जाने पर भी बच्चे /बच्ची के विवाह नही हो रहे

2 व्यापार /व्यापारी -
   आदरणीय एक समय घ जब मालिक नॉकर के बीच पिता -पुत्र /भाई भाई जैसा रिश्ता होता था और सुख दुख में सदैव एक दूसरे का सहारा बनते थे नॉकर व्यापारी का काम लग्न /मेहनत से करता था और व्यापारी उसके सुख दुख में आर्थिक व अन्य मदद करता था जोकि नॉकर को वापिस करने की चिंता कभी नही रही  किन्तु आज व्यापारी नॉकर से ज्यादा काम करवाना चाहता है मेहनताना पूरा देता नही /वही नॉकर मेहनताना ज्यादा और काम करना चाहता है परिणाम दोनो ही अत्यधिक स्वार्थी बनकर रह गए इसलिये आज बेरोजगारी जैसी स्थिति बन गई

3 समाजिक संगठन -
  आदरणीय समाजिक संगठन सदैव समाजहित जरूरतमंद की मदद एवं समाज उत्थान के लक्ष्य से बनते अवश्य है और गरीब /अमीर सभी  सहयोग भी करते है किंतु संगठनों में धनी को पद /मंच/माला /माइको से लगाव है और गरीब को अहमियत कोई देना चाहता नही इसलिये उसका शोषण ही पदाधिकारीअनेक तरह से करते है सरकार से मिलने वाली सुविधा / सहायता हो या समाज से मिला चन्दा सब पर धनी अधिकार जमाकर बैठ जाते है
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4 धार्मिक संगठन -
   आदरणीय एक समय था जब आज की तरह धार्मिक संगठन नही थे बल्कि ऋषि /महृषि /गुरुजन अपनी कुटिया /आश्रम में ही शिष्यों को धर्म की शिक्षा /आमजन को धर्म प्रवचन देकर धर्म का प्रसार करते थे उन्हें आज की भांति धन /पद या राजनीति में रुचि एक हद तक ही होती थी किन्तु आजकल धर्म को भी कुछ ने व्यापार बना रखा है और भक्त जन दिल खोलकर धन देने लगते है परिणाम जरूरतमंद को मदद नही मिल रही और धार्मिक संगठन करोड़ो /अरबो की सम्पति बनाकर बैठ गए

5 राजनीति संगठन -
 आदरणीय किसी भी देश /राज्य की उन्नति /पतन के पीछे ये संगठन बड़े जिम्मेदार होते है राजनीति कोई करे किन्तु उसका लक्ष्य देश /राज्य के हित मे होनी चाहिये किन्तु दुर्भाग्य की बात है राजनीति में कुछ विपक्षियों को देश /राज्य /ग्राम की चिंता नही होती वो तो केवल विरोध करना जानते है ताकि आमजन भृमित रहे और उनकी राजनीतिक पहचान बनी रहे इसके बदले बेसक देश /राज्य का पतन हो उन्हें परवाह नही
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6 मीडिया/सोशल मीडिया  -
आदरणीय किसी भी देश की उन्नति /पतन के लिये ये भी बराबर का जिम्मेदार है इसी के माध्यम से आमजन को सूचनाएं मिलने लगी है और इसके साथ जुड़े बन्धु जैसा प्रचार करेंगे ठीक वैसा ही असर देश /राज्य की जनता के दिमाग मे होगा अगर है देश /राज्य की उन्नति के उद्देश्य से अच्छी जानकारी /सूचनाएं /फ़िल्म /नाटक दिखाए तब तो हर कोई उन्नति के राह पर चलेगा  और वही सोशल मीडिया /मीडिया के माध्यम से आमजन को भृमित /झूठी जानकारी /अश्लील प्रोग्राम /फ़िल्म आदि का प्रसार होगा तो निश्चित ही देश /राज्य का पतन होगा
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7 युवापीढ़ी -
आदरणीय किसी भी देश /राज्य का युवा उसका भविष्य निर्धारित करता है और बचपन से जवानी तक इसने जो सीखा /समझा उसी अनुरूप ये कार्य करता है जिसका परिणाम देश /राज्य को मिलता है इसलिये हर युवा को चाहिये सदैव अच्छा सीखे अच्छे कार्य करने का प्रयास करे और जो कोई भटक रहा हो उसे समझाकर अच्छे मार्ग पर लाये ताकि सबकी उन्नति हो ।

लेख पढ़ने के लिये आपका धन्यवाद ।

ॐ नमो ---//---
आज के लिये इतना ही बाकी फिर

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रविवार, 16 फ़रवरी 2020

जीवन मरण क्या है ?

जीवन मरण क्या है ?

किसकी मृत्यु कब होगी जानने के लिए लेख को अंत तक पढ़े

आदरणीय आत्मा अजर अमर अविनाशी है ये आप हम बहुत बार सुनते रहे है यानी आत्मा का ना जन्म होता है और ना मरण ,
आत्मा ना कभी बूढ़ी होती है ना ही जवान क्योकि आत्मा निराकार है जैसे शरीर को धारण करती है उसमे जब तक रहेगी वही उसका स्वरूप कह सकते है ,
जिसका जन्म नही उसका मरण नही जो कभी युवा नही वो कभी वृद्ध नही इसलिये आत्मा अविनाशी हुई अतः आत्मा द्वारा नया शरीर धारण करना जन्म है और उस शरीर का त्याग (प्राण वायु का निकल जाना) मरण

इतना सब जानने के बाद हर कोई जानना चाहेगा कि जन्म मरण का रहस्य क्या 👇🏻
आत्मा परमात्मा के आदेशानुसार अनेको प्रकार के शरीर धारण करती है किस शरीर मे किस आत्मा द्वारा किस तरह के कर्म किये ये अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि उस शरीर के नष्ट होने पर आत्मा जब पुनः नवशरीर में प्रवेश करेगी तब पूर्वशरीर(जन्म) के कर्म आधार पर उसको फल मिलना है जिसके पूर्व शरीर (जन्म) ने अच्छे कर्म किये हो उन्हें अनेको प्रकार से लाभ मिलते देखा है जबकि मौजूदा शरीर मे रहकर उन्होंने ऐसा कोई कर्म नही किया जिसके फल स्वरूप उन्हें वो सब मिले

उदाहरण - नन्हे मासूम बच्चे के पूर्वशरीर के अच्छे कर्म के फलस्वरूप नवशरीर ( जन्म )योनि पर मिलने वाले परिवार /सम्पति में हकदार /एवं अन्य कुछ सम्भव

आपने देखा होगा  संसार मे आत्माएं दो प्रकार के शरीर धारण करती है
एक वो शरीर जो जन्म से मरण तक स्वयं एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरण व अनेको कार्य /क्रिया  करता है और शरीर के मरण (सांसारिक मृत्यु) होने पर स्वयं कुछ नही कर पाता बल्कि अन्य शरीरों में मौजूद आत्माएं उस शरीर को नष्ट कर देती है ताकि पुनः नवशरीर में वो आत्मा फिर से विचरण कर सके
उदाहरण - पशु /पक्षी /मानव एवं अन्य जीव जंतु



 दूसरे मौजूदा शरीर मे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ना तो विचरण करती है ना ही स्वयं अन्य कुछ कर पाती है उस शरीर के साथ अन्य शरीर मे मौजूद आत्माएं क्रिया कर जीवन को एक गति प्रदान करती है
 उदाहरण -पहाड़ /पेड़ /पौधे   जोकि स्वयं कुछ नही कर सकते किन्तु उनमे भी जीवन है तभी तो हम सभी को फल /फूल /जड़ी बूटियां व बेशकीमती रत्न आदि प्राप्त होते रहते है और उनका मरण (वो शरीर) समाप्त होते ही वो आत्माएं फिर परमात्मा के आदेशानुसार नवशरीर को धारण करती है

किसकी मृत्यु कब होगी ? 👇🏻

आदरणीय इसका जवाब किसी भी इंसान के पास नही कारण किस पल कब क्या होगा आप हम सोच तो सकते है पर कर पाए या नही ये परमात्मा की इच्छा पर निर्भर है
उदाहरण -आपने सुना होगा कण कण पर लिखा खाने वाले का नाम यानी आपके आगे रखी थाली का भोजन आप खा पाए या नही ये आपको ज्ञात नही हो सकता है अन्य आपका मित्र साथ खाने लग जाये उसे रोक तो नही सकते ना  दोनो अपने भाग्य अनुसार खा पाएंगे ना कम ना ज्यादा

कल कही पढा की शरीर जब रहने लायक नही हो तब आत्मा शरीर का त्याग कर नया शरीर धारण करती है यानी उस शरीर की मृत्यु हो जाती है

ये पूर्ण सत्य नही कारण आपने देखा सुना होगा प्रति दिन घटना /दुर्घटनाओं में छोटे मासूम से लेकर युवा व वृद्ध तक की मृत्यु हो रही है
सोचिये क्या नवजात /युवा का शरीर रहने लायक नही था अवशय था किंतु पूर्व शरीर मे किये कर्मो के आधार पर उनके नवशरीर के जन्म मरण का समय निर्धारित था इसलिये ऐसा हुआ

सारांश - सृष्टि में मौजूद आत्माओं द्वारा जितने भी शरीर धारण करने /छोड़ने के समय को उनके कर्म आधार पर मिले समय को जीवनकाल यानी जन्म मरण कह सकते है अतः भाव इतना कि मानव शरीर बड़े भाग्य से मिलता है जब तक आपके पास समय है तब तक सदैव अच्छे कर्म करे ताकि इस शरीर के बाद आप परमात्मा में विलीन हो सके या फिर नवशरीर में अच्छा जीवन जी सके

स्वर्ग और नरक भी यही है अन्यत्र कही नही आप अनेको योनियों में मौजूद शरीर की दशा दिशा देखकर उनकी स्थिति का जान सकते है ।।

कटु सत्य किसी भी मानव ने अभी तक वो साइंस नही बनाई जो परमात्मा के सम्पूर्ण रहस्यों को जान सके

कागज की डिग्रियां हो या धरातल के अनुभव दोनो ही परमात्मा की साइंस के आगे बहुत छोटे है अतः परमात्मा में विस्वास कर अच्छे कर्म करते जाओ बाकी परमात्मा की इच्छा

आज के लिये इतना ही बाकी फिर

लेख पढ़ने के लिये आपका धन्यवाद

ॐ नमो---//---



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शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

मृत्यु क्या है क्यो नष्ट करते है मृत शरीर ?

मृत्यु क्या है क्यो नष्ट किया जाता है मृतशरीर ?

पूरा लेख पढ़कर ही किसी निष्कर्ष पर पहुचे ताकि बात समझ आये

आदरणीय आज का विषय गहरा है अक्सर आप जब किसी के शरीर मे स्वांश का आवागमन  रुका देख /सुन लेते है तो उसे मृत मान लेते है डॉक्टर भी श्वांस /रक्त के प्रवाह को रुका देख जीव को मृत घोषित कर देते है ऐसा हमने सुना है

किन्तु हमारे मतानुसार ये पूर्ण सत्य नही है

मृत्यु को जनाने के लिये लेख को पूरा पढ़े

मृत्यु को हम अनेक प्रकार की मानते है

मृत्यु के प्रकार 👇🏻

1 शरीर में श्वांस /रक्त के प्रवाह का रुक जाना मृत्यु संसार मानता है

2 हमारे धर्मानुसार कुछ विशेष प्रकार के साधु जिंदा रहते हुए साँसार के तमाम सुख / संसाधन /वैभव त्याग कर स्वयं के पिंड दान कर मृत मान लेते है उसके बाद उनका संसार की मोह माया ममता से कोई रिश्ता नही रहता अगर रहता है तो केवल एक परमात्मा से उनका जप /तप/पूजा /पाठ यानी तमाम वो क्रियाएं जिनसे परमात्मा की प्राप्ती हो वही उनका अंतिम लक्ष्य  कहलाता है क्योकि उनका मानना है परमात्मा से मिलन के बाद पुनः किसी भी शरीर को धारण करने की आवश्यकता नही रहेगी

3 वो जिनकी डॉक्टर /व आमजन अनुसार मृत्यु सेंकडो वर्ष पहले हो चुकी किन्तु उनके प्राण अभी बाकी है कारण सभी धर्मों में मृतक का अलग अलग तरिके से अंतिम संस्कार होता है
उदाहरण -हमारे धर्म मे दाहसंस्कार यानी मृत शरीर को चिता में जलाकर अंतिम सँस्कार होता है
एक अन्य धर्म मे मृतशरीर को धरती में गड्ढा खोदकर यानी कब्र में दफना कर अंतिम संस्कार
 किया जाता है
एक अन्य धर्म के बारे में सुना है वो ना दफनाते है और ना चिता में मृतक को जलाते है वो मृतक को एक बड़ा सा कुवा नुमा खुले स्थान पर रख आते है जहां अनेको प्रकार के मांसाहारी जीव जंतु पक्षी उस मृतक के शरीर को नष्ट कर अंतिम संस्कार कर देते है

सुना है दुनिया मे ऐसे भी हुए है जिनकी सांसारिक रूप से तो मृत्यु बहुत पहले हो चुकी किन्तु प्राण अभी भी बाकी है

उदाहरण  -विदेशो में कुछ मम्मियां ऐसी सुनी है जिनके बाल /नाखून बढ़ रहे है जबकि मृत्यु तो काफी साल पहले हो चुकी

 कुछ सिद्ध साधु संतों का भी सुनने को मिलता है जिनकी मृत्यु तो काफी साल पहले हो चुकी किन्तु अस्थिपिंजर आज भी योग साधना में लीन है यानी ऐसा लगता है वो अभी तक जीवित अवस्था मे साधना कर रहे है

क्यो नष्ट किया जाता है मृत शरीर 👇🏻
आदरणीय आत्मा अमर है इसके लिये शरीर मात्र एक वस्त्र है जिसे परमात्मा की इच्छा अनुसार आत्मा अनेको प्रकार के शरीर को धारण करती है छोड़ देती है और इसी प्रकार ये चक्र चलता रहता है
किस आत्मा ने कौनसा शरीर धारण किया कब छोड़ देगी ये आप हम नही जान पाते हम नवजात को एक नाम देकर सांसारिक पहचान तो देते है और वो पहचान शरीर के नष्ट होने तक ही रहती है उसके बाद आत्मा का  कब कहा किस जाति /प्रजाति में जन्म ले क्या नाम हो कोई नही जानता इन्ही कारणों से सदियों पूर्व समाज के बुद्धिजीवी वर्ग ने मृतक के शरीर को अलग अलग प्रकार से नष्ट करना शुरू किया ताकि उस शरीर मे आत्मा पुनः प्रवेश नही कर सके क्योकि पुनः  प्रवेश अगर कर भी ले तो कौन जान पायेगा वही आत्मा है या अन्य कोई आत्मा है
सभी धर्म अलग अलग प्रकार से मृत मानव शरीर को नष्ट करते है

सारांश - ये आप पर निर्भर है कि आपने लेख को किस नजरिये से पढ़ा और क्या आप समझ पाए जो आपको ठीक लगे वही इस लेख का सार समझ लीजिये क्योकि हर किसी के अपने मान्यता है

साधु संत मानते है कि समाधि लीन शरीर फिर जीवित हो सकता है यानी योग निद्रा जाने कब खुल जाए इसलिये वो शरीर को नष्ट नही करते

सांसारिक लोग मानते है मृतक जिंदा नही हो सकता इसलिये अपने धर्म अनुसार अंतिम संस्कार करते है

वही कुछ विदेशी जिन्होंने मम्मियां रखी हुई है वो भी मानते है मृतक जीवित हो सकता है और इसी कारण वर्षो से मम्मियों को संभाल कर रखे हुए है अन्यथा कब का नष्ट कर देते

लेख पढ़ने के लिये आपका धन्यवाद

आज के लिये इतना ही बाकी फिर

ॐ नमो ---//---

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शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2020

क्या वेलेंटाइन डे मनाना चाहिये ?

क्या वेलेंटाइन डे मनाना चाहिये ?

आदरणीय दुनिया मे हर किसी को अपनी इच्छा अनुसार जीने का अधिकार है
किंतु
क्या एक दिन वेलेंटाइन डे मनाने प्रेम /प्यार का प्रदर्शन उचित है 🤔

 क्या आप अपने साथी से एक ही दिन प्रेम करना चाहेंगे 🤔

साल के बाकी के दिन प्रेम की जरूरत नही क्या आपको या आप बाकी के दिन अपने साथी से प्रेम नही करते 🤔

आदरणीय हम भारतीयों के पूर्वजो का कहना है कि विवाह का बंधन सात जन्म का होता है हर पल जीवनसाथी से प्रेम के पल इंसान कभी नही भूलता

एक सत्य ये भी है कि प्रेम केवल जीवनसाथी या प्रेमिका तक सीमित नही बल्कि  इंसान प्रेम अपने माता पिता भाई बहन पति पत्नी बेटा बेटी मित्र एवं अन्य बहुत से  सदैव करता रहा है और करता रहेगा क्योंकि प्रेम के बिन जीवन मे कुछ भी नही

भक्त भगवान से प्रेम करता है
प्रेमी प्रेमिका से प्रेम करती है
पत्नी पति से प्रेम करती है

कहने का तातपर्य प्रेम अनन्त है इसका उल्लेख शब्दो मे कर पाना आसान नही

अतः मानव जीवन को सार्थक बनाने के सबसे प्रेम कीजिये अपनी जिम्मेदारी निभाईये किन्तु प्रेम /प्यार के नाम पर किसी से धोखा नही करे झूठा प्रदर्शन नही करे और ना ही स्वयं प्यार में किसी धोखे का शिकार बने


ये सब लिखने का कारन केवल इतना कि आज प्यार के नाम पर युवा बहक रहे है अनेको की जिंदगी बर्बाद हो चुकी और जाने कितने ही अभी प्यार /प्रेम को को टीवी /सोशल मीडिया पर दिखावटी /नकली प्यार देखकर बहकने बाकी है कहना सम्भव नही ।।


सारांश - माता पिता अपना दायित्व निभाये अपने जीवनसाथी के साथ प्रतिदिन वेलेंटाइन डे मनाए ताकि आपके प्रेम की कदर हो और आपके बच्चे भी भविष्य में विवाह के उपरांत अपने जीवनसाथी संग वेलेंटाइन डे मना सके  युवा पीढ़ी देश /परिवार का भविष्य है उसको सही मार्ग दिखाना /मार्गदर्शित करना सबका दायित्व है


धन्यवाद

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आज के लिये इतना ही

मार्गदर्शन /लेखक -   राधा /महेश

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