मृत्युभोज
आदरणीय एक ऐसी प्रथा जो इंसान के मरने के बाद उसके परिवार जन वर्षो से निभाता रहा है इस प्रथा को सदियों पूर्व बुजुर्गो ने शोकाकुल परिवार को सांत्वना देने और उसकी यथा सम्भव मदद हेतु शुरू किया था इस भोज में मृतक के परिवार /रिश्तेदार दूर दराज से शोकाकुल परिवार को सांत्वना देने आते थे क्योंकि जीवन मरण तो अटल सत्य है कोई नही मिटा सकता
पहले सब ठीक से निभाते रहे किन्तु जबसे धन प्रभाव लोगो पर कुछ ज्यादा हो गया तब से धनी परिवार मृतक के मृतयभोज में अनेकानेक व्यंजन ऐसे बनवाते है जैसे किसी के शादी ब्याह में आमंत्रित कर रहे हो जबकि जानते है कि ये गलत है इसको शोक नही अपितु मृतयभोज का उपहास ही कहा जा सकता है
मृत्युभोज के पीछे का मूल कारण क्या होगा -
हमारे अनुसार मृत्य के दाह संस्कार वाले दिन उस घर मे भोजन नही बनता पास पड़ोस के लोग ही सादा भोजन ही लाकर खिलाते थे पहले के जमाने मे आने जाने के साधन हो या ठहरने आदि की व्यवस्थाएं आज की भांति नही थी इसलिये दूर दराज से आये स्वजनों को भोजन करवाना भी एक जरूरत थी
मृत्युभोज कैसा हो:-
पुरखो द्वारा मृत्युभोज में सादा भोजन दाल (सब्जी) रोटी ही बनाई जाती थी किन्तु किसी ऐसे बुजुर्ग जो अपनी सभी जिम्मेदारी निभा गए हो और उनके सभी पुत्र पौत्र आदि जीवित हो तब एक मिष्ठान भी मृत्युभोज में रखा जाता था और ऐसा ही अब भी होना चाहिये
समाज के धनी वर्ग से अपेक्षा-
समाज के धनी वर्ग को चाहिये अपने धन को मृत्युभोज जैसी प्रथा में अनावश्यक खर्च नही करे कारण उनकी देखा देखी समाज का माध्यम वर्ग भी कर्ज उठाकर करने लगता है जिससे समाज मे गलत संदेश ही सदैव गया है अतः आडम्बर रहित मृत्युभोज ही मृतको के लिये बनाना चाहिये
!! धन्यवाद !!
🙏🏻
मैढ़ स्वर्णकार रिश्ते
9034664991
Https://msrishtey.blogspot.com
आदरणीय एक ऐसी प्रथा जो इंसान के मरने के बाद उसके परिवार जन वर्षो से निभाता रहा है इस प्रथा को सदियों पूर्व बुजुर्गो ने शोकाकुल परिवार को सांत्वना देने और उसकी यथा सम्भव मदद हेतु शुरू किया था इस भोज में मृतक के परिवार /रिश्तेदार दूर दराज से शोकाकुल परिवार को सांत्वना देने आते थे क्योंकि जीवन मरण तो अटल सत्य है कोई नही मिटा सकता
पहले सब ठीक से निभाते रहे किन्तु जबसे धन प्रभाव लोगो पर कुछ ज्यादा हो गया तब से धनी परिवार मृतक के मृतयभोज में अनेकानेक व्यंजन ऐसे बनवाते है जैसे किसी के शादी ब्याह में आमंत्रित कर रहे हो जबकि जानते है कि ये गलत है इसको शोक नही अपितु मृतयभोज का उपहास ही कहा जा सकता है
मृत्युभोज के पीछे का मूल कारण क्या होगा -
हमारे अनुसार मृत्य के दाह संस्कार वाले दिन उस घर मे भोजन नही बनता पास पड़ोस के लोग ही सादा भोजन ही लाकर खिलाते थे पहले के जमाने मे आने जाने के साधन हो या ठहरने आदि की व्यवस्थाएं आज की भांति नही थी इसलिये दूर दराज से आये स्वजनों को भोजन करवाना भी एक जरूरत थी
मृत्युभोज कैसा हो:-
पुरखो द्वारा मृत्युभोज में सादा भोजन दाल (सब्जी) रोटी ही बनाई जाती थी किन्तु किसी ऐसे बुजुर्ग जो अपनी सभी जिम्मेदारी निभा गए हो और उनके सभी पुत्र पौत्र आदि जीवित हो तब एक मिष्ठान भी मृत्युभोज में रखा जाता था और ऐसा ही अब भी होना चाहिये
समाज के धनी वर्ग से अपेक्षा-
समाज के धनी वर्ग को चाहिये अपने धन को मृत्युभोज जैसी प्रथा में अनावश्यक खर्च नही करे कारण उनकी देखा देखी समाज का माध्यम वर्ग भी कर्ज उठाकर करने लगता है जिससे समाज मे गलत संदेश ही सदैव गया है अतः आडम्बर रहित मृत्युभोज ही मृतको के लिये बनाना चाहिये
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