आदरणीय दधिमती माता की जानकारी में आपका स्वागत है
---------------------------------------------------
नागौर जिले के जायल कस्बे से लगभग 10 कि. मी. दूर गोठ व मांगलोद नामक गाँव है यहां माँ भगवती दधिमती का विशाल मंदिर है! मंदिर का निर्माण सम्भवतः प्रतिहार नरेश भोजदेव प्रथम के समय विकमी सम्वत 836-892 के मध्य हुआ था !जनश्रुतियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण मान्धाता ने करवाया था
-------------------------------------------------------
मंदिर के गर्भगृह की सतह सभामंडप की सतह से एक फिट नीचे है! गर्भगृह में मात्र देवी का कपाल ही प्रतिष्टित है ! मंदिर का सभामंडप एवं गर्भगृह 36 स्तम्भो पर निर्मित है ! जिनमे एक स्तम्भ अधर रूप में है !मंदिर का शिखर नागर शैली का सप्तभौम नाटा शिखर है !जो प्रतिहार परंपरा के अनुरूप है ! शिखर पर चन्द्रशाला का जाल उत्कीर्ण है ! वेदिबन्द की सादगी ,जंगा भाग में रथिकाओं में देवी -देवताओं की मूर्तियां ,मंडोवर व शिखर की मध्यवर्ती कंठिका में चारो तरफ रामायण दृश्यावली उत्कीर्ण है !
----------------------------------------------------------
मंदिर में उपलब्ध शिलालेखों के आधार पर इसे काफी प्राचीन माना गया है ! मंदिर का निर्माण प्रतिहार शैली में हुआ है ! ग्याहरवीं शताब्दी में गर्भगृह की मूल प्रतिमा ,सभा मंडप आदि पुनः निर्मित किये गए है
--------------------------------------
गोठमांगलोद के इस क्षेत्र को कपाल पीठ कहा जाता है ! पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार सती का कपाल यहां गिरा था ! इस कारण यह स्थान कपालपीठ नाम से विख्यात हुआ ! द्वापर में पांडव अज्ञातवास काल मे कपालपीठ के दर्शन करते हुए पुष्कर गए थे, इसका उल्लेख पुराणों में मिलता है ! स. 1231 में क्रूर आक्रमणी मोहमद गजनी भारत मे मंदिर ध्वंस करने के अभियान अंर्तगत गोठमांगलोद के मंदिर एवं कपाल कुंड को तोड़ने आया ! उस समय देवी के चमत्कार से काले भैंरो ने उसके सैनिकों पर आक्रमण कर दिया ! इस तरह वह इस मंदिर को पूर्ण ध्वस्त नही कर पाया !
--------------------------------------- दाधीच ब्राह्मण इस देवी को अपनी कुलदेवी मानते है किंतु देवी के उपासक नागौर जिले की प्रायः सभी जातियों में पाए जाते है ! वस्तुतः इस क्षेत्र ( दधिमत क्षेत्र ) से उतपन्न होने वाले सभी वर्ण ,जाति के लोग दधिमत कहलाने लगे , इस कारण सभी वर्ण के लोग इस देवी की उपासना करते है !
---------------------------------------
मंदिर में मात्र देवी का कपाल ही प्रतिष्ठित होने के विषय मे कथा है कि इस क्षेत्र गाय चराने वाले एक चरवाहे को आकाशवाणी से महामाया दधिमती ने संकेत दिया कि मैं भूमि से पुनः प्रकट हो रही हु ! अगर गाय भड़क जाए तो तुम भयभीत मत होना ! तदनुसार जब देवी प्रकट हो रही थी तब सिंह गर्जना सुन गाय भड़क उठी ! चरवाहा देवी की बात को भूल कर चिल्ला उठा ! फलस्वरूप देवी का पुरा स्वरूप भूमि से ना निकल कर केवल कपाल ही प्रकटय हुआ ! वर्ष में चैत्र और आश्विन माह में श्रद्धालुओं का यहाँ तांता लगा रहता है
इति. भाग स्माप्तम
----------------------------------------------------------
जानकारी प्राप्त -आदरणीय राम नारायण जी सोनी
----------------------------------------------------------
*अधिक जानकारी के लिये बने रहे हमारे साथ बुजर्गो से मिली जानकारियां समाजहित में आप सबके साथ साझा करने का प्रयास मात्र है*
धन्यवाद
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
9034664991
---------------------------------------------------
नागौर जिले के जायल कस्बे से लगभग 10 कि. मी. दूर गोठ व मांगलोद नामक गाँव है यहां माँ भगवती दधिमती का विशाल मंदिर है! मंदिर का निर्माण सम्भवतः प्रतिहार नरेश भोजदेव प्रथम के समय विकमी सम्वत 836-892 के मध्य हुआ था !जनश्रुतियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण मान्धाता ने करवाया था
-------------------------------------------------------
मंदिर के गर्भगृह की सतह सभामंडप की सतह से एक फिट नीचे है! गर्भगृह में मात्र देवी का कपाल ही प्रतिष्टित है ! मंदिर का सभामंडप एवं गर्भगृह 36 स्तम्भो पर निर्मित है ! जिनमे एक स्तम्भ अधर रूप में है !मंदिर का शिखर नागर शैली का सप्तभौम नाटा शिखर है !जो प्रतिहार परंपरा के अनुरूप है ! शिखर पर चन्द्रशाला का जाल उत्कीर्ण है ! वेदिबन्द की सादगी ,जंगा भाग में रथिकाओं में देवी -देवताओं की मूर्तियां ,मंडोवर व शिखर की मध्यवर्ती कंठिका में चारो तरफ रामायण दृश्यावली उत्कीर्ण है !
----------------------------------------------------------
मंदिर में उपलब्ध शिलालेखों के आधार पर इसे काफी प्राचीन माना गया है ! मंदिर का निर्माण प्रतिहार शैली में हुआ है ! ग्याहरवीं शताब्दी में गर्भगृह की मूल प्रतिमा ,सभा मंडप आदि पुनः निर्मित किये गए है
--------------------------------------
गोठमांगलोद के इस क्षेत्र को कपाल पीठ कहा जाता है ! पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार सती का कपाल यहां गिरा था ! इस कारण यह स्थान कपालपीठ नाम से विख्यात हुआ ! द्वापर में पांडव अज्ञातवास काल मे कपालपीठ के दर्शन करते हुए पुष्कर गए थे, इसका उल्लेख पुराणों में मिलता है ! स. 1231 में क्रूर आक्रमणी मोहमद गजनी भारत मे मंदिर ध्वंस करने के अभियान अंर्तगत गोठमांगलोद के मंदिर एवं कपाल कुंड को तोड़ने आया ! उस समय देवी के चमत्कार से काले भैंरो ने उसके सैनिकों पर आक्रमण कर दिया ! इस तरह वह इस मंदिर को पूर्ण ध्वस्त नही कर पाया !
--------------------------------------- दाधीच ब्राह्मण इस देवी को अपनी कुलदेवी मानते है किंतु देवी के उपासक नागौर जिले की प्रायः सभी जातियों में पाए जाते है ! वस्तुतः इस क्षेत्र ( दधिमत क्षेत्र ) से उतपन्न होने वाले सभी वर्ण ,जाति के लोग दधिमत कहलाने लगे , इस कारण सभी वर्ण के लोग इस देवी की उपासना करते है !
---------------------------------------
मंदिर में मात्र देवी का कपाल ही प्रतिष्ठित होने के विषय मे कथा है कि इस क्षेत्र गाय चराने वाले एक चरवाहे को आकाशवाणी से महामाया दधिमती ने संकेत दिया कि मैं भूमि से पुनः प्रकट हो रही हु ! अगर गाय भड़क जाए तो तुम भयभीत मत होना ! तदनुसार जब देवी प्रकट हो रही थी तब सिंह गर्जना सुन गाय भड़क उठी ! चरवाहा देवी की बात को भूल कर चिल्ला उठा ! फलस्वरूप देवी का पुरा स्वरूप भूमि से ना निकल कर केवल कपाल ही प्रकटय हुआ ! वर्ष में चैत्र और आश्विन माह में श्रद्धालुओं का यहाँ तांता लगा रहता है
इति. भाग स्माप्तम
----------------------------------------------------------
जानकारी प्राप्त -आदरणीय राम नारायण जी सोनी
----------------------------------------------------------
*अधिक जानकारी के लिये बने रहे हमारे साथ बुजर्गो से मिली जानकारियां समाजहित में आप सबके साथ साझा करने का प्रयास मात्र है*
धन्यवाद
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
- महेश कुमार
9034664991