मनुष्य तब नही हारता जब उसके सामने दुश्मन अधिक बलशाली /सामर्थ्यवान हो
बल्कि मनुष्य तब हारता है जब उसके पास आत्मविश्वास की कमी हो या उसके ही विश्वास पात्र उसको धोखा दे जाए
क्योकि गैरो से इंसान सम्भल सकता है लेकिन उसके अपनो से सम्भल पाए जरूरी नही और कलयुग में देखा /सुना गया है कि अक्सर अपनो के द्वारा बहुतो को बर्बाद किया गया है फिर बर्बादी तन की हो मन की या अन्य किसी प्रकार की पर कर देते है बर्बाद
जीवन की हार या जीत मायने नही रखती जरूरी है आत्मविश्वास जोकि ना बाजार में मिलता है ना कोई और दे सकता है ये तो इंसान के भीतर ही होता है आवश्यकता होती है इसको समझने की
जो इसे समझ गया निश्चित ही उसे कोई नही हरा सकता और जो इसको नही समझा वो जीत कर भी हार जाता है आत्मविश्वास
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